कीटनाशको के उपयोग से महंगी होती कृषि .....
अभी हाल में ही मौसम- बदलाव ने अपना रग दिखाना प्रारम्भ किया तो बहुत से किसानो ने अपने जीवन को हीसमाप्त कर दिया | मौसम बदलाव के पीछे कारण मानवीय हो या प्राकृतिक, लेकिन किसानो को जिस चीज ने इसकृत्य को करने के लिए मजबूर किया उसमे खेती में किये जाने वाले बढ़े हुए इन्वेस्ट का काफीसीमातक योगदान है जिससे उन पर कर्ज का बोझ बढ़ जाता है|
बड़े व्यापारिक पैमाने पर बने कीटनाशको एवं रशयनिक उर्वरको के उपयोग ने, महंगे ख़रीदे गए संकरित बीजो ने, सिचाई के
लिए खरीदे गए महंगे यंत्रो और साथ ही विद्युत पर सिचाई के लिए निर्भरता ने कृषि कोमहंगा बना दिया है|
जैविक खेती के विशेज्ञों के अनुसार यदि किसान पर्यावरणीय विधियों एवं प्रथाओ को अपनायेतो खेती मुनाफे की हो सकती है "जीरो बजट नेचुरल खेती" की अवधारणा का विस्तार किया जाना चाहिए |
गाय का गोबर एवं मल- मूत्र से जैविकखाद से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बढ़ जाती है जिससे उत्पादकता में बढ़ोतड़ी होती है| इसके साथ ही बहुत से पेस्टोसे प्राकृतक तरीको से मुक्ति मिलती है |
सरकार को इस प्रकार की खेती को प्रारम्भिक स्तर पर मदद करनी चाहिए सरकार सब्सिडी द्वारा, कृषि उपज केस्थानांतरण द्वारा, इनके लिए मार्किट बनाना एवं सीधे किसानो से खरीद करके अपनी महवपूर्ण भूमिका अदा करसकती है |
इस विधि का उपयोग करके हम न केवल अच्छा स्वस्थ वर्धक खाद्य पदार्थ एवं आर्थिक सुरक्षा हमारे किसानो को देसकते है इसके साथ साथ ही स्थानीय स्तर पर दुग्ध व्यवसाय को भी प्रमोट कर सकते है |
मिटी की उर्वरता, सतत रूप से कृषि उत्पादकता, कृषि उत्पाद की नुट्रिशन वैल्यू और पशुओं की खेती पर निर्भरताआपस में संबंधित है यही कारक भारत जैसे कृषि प्रधान देश में स्थान विशेष की आर्थिक सामर्थ्य को मजबूत करतेहै|
Vikas Arora
SADED
No comments:
Post a Comment